Wednesday, October 7, 2020

 ज़रा इतना तो बता दो साकी क्या मिलाया है ज़ाम में
आज उनके अजब सी अकड़ की बुँ आ रही है।

यूँ तो वो भी रश्क-ए-महताब हैं इस बज़्म-ए-शाम में
मुझको ही क्यों उनकी याद-ए-गुफ़्तगू सता रही है।  

निगह-ए-शौक़ मैंने भी देखा है उनके हर इक पैग़ाम में
फिर क्यूँ नम ऑंखें ये मिरी ग़म-ए-आंसू बहा रही है।

सितम उनके भी हर अपनाये मैंने इश्क़ के  इनाम में
फिर क्यूँ दिल की आहें असीर-ए-जुस्तजू जता रही है।
 
एक और पैमाना भरदे साकी उनके दुआ-ओ-सलाम में
ज़िन्दगी आज फिर "धरम" से होनेको  रू-ब-रू आ रही है।            

- कमल नूहिवाल "धरमवीर"    



Monday, October 5, 2020

 

इक नज़ाक़त से रख छोड़ा है शीशा-ए-दिल तिरे ठिकाने में सनम
इसे संभाल कर रखने में तुमको भी थोड़ी ज़हमत तो होगी।
 
कहीं बिख़र न जाये ज़र्रा ज़र्रा तिरे खनक-ए-कंगन-ए-ज़र्रीं से
मिरे दिल के लिए तेरे अहसासों में भी दर्द की अलामत तो होगी।
 
इक मुद्दत से रक्खा है याद-ए-महबूब को शीशे में शीशे की तरह
ज़ब्र ही सही पर इसे निगाह-बसर करने को तेरी रहमत तो होगी।
 
दिल सलामत से वापिस भी करना मुलाक़ात-ए-अर्श-गाह-ए-हुस्न में
ये भी मुक़र्रर है की एक दिन खुदा के "धरम" से क़यामत तो होगी।।
-कमल नूहिवाल "धरमवीर"

 

 

मेरे ख़्वाबों को हर सजाए जो ज़ीनत का कभी दीदार मिला

शहर उजड़े थे पर ख्वाईशें अपनी दफ्नाऊं ऐसा मज़ार मिला 

 

उनके  वाबस्ता गुल--सौगात हो ऐसा कोई गुलज़ार मिला 

मेरी उल्फ़त का जो उनसे ज़िक्र करे ऐसा कोई तरफ़दार मिला

 

हम तरसते ही रहे और उनकी नज़रों का इक इकरार मिला

दिल की हसरतें  ईबादत में बयां हो ऐसा कोई दरबार मिला

 

इश्क़ चाहत है ग़र इज़हार--इश्क़ का कोई क़िरदार मिला

मिरी  धड़कन को समझे जो ऐसा भी कोई दिलदार मिला

 

हुस्न के बाज़ार में दिल के ज़ख्मो का कोई ख़रीदार मिला

इतना तो वाज़िब है की मुझसा भी कोई तलबग़ार मिला।।

 

-कमल नूहिवाल " धरमवीर " 


Wednesday, September 30, 2020

 

एक  गुल खिलाने  की  कोशिश  किया था  तिरे  दिल  के  गुल-दान में 

बस यूँ ही झुलस कर रह गया  तिरे  आग--मुंतज़िर  वीरान  में .

 

@कमल

 

 

यूँ तो बातें बहुत थी करने को

सजा कर रखे भी थे अल्फ़ाज़ों को

डरते हैं कहीं बुरा न लगे -

हम खुद ही रुसवा न करदें अपने जज़्बातों को

हम अपनी बातें सरेआम करते गए

वो तरसते रहे हमारे लिफाफों को।।   

 

@कमल